“Rajneeti Mat Karo”


देश-विदेश की राजनीति पर हर तरह की चुटकी लेते रहने वाले बहुत लोग ऐसे मिलेंगे जो सोशल मीडिया पर कोई ऐसी पोस्ट मिलते ही कहने लगते हैं “No Politics”, या “राजनीति मत करो”. राजनीति को लेकर उनका यह चौकन्नापन अथवा चिंता विशेष रूप से तब बहुत फुर्ती से मुखर होती है जब कोई पोस्ट बीजेपी या मोदीजी के अनुकूल लगती हो. ज़रा गहरे पैठकर देखेंगे तो पाएंगे कि राजनीति न करने की तटस्थता-मूलक सलाह देने वाले ये मित्र प्राय: तथाकथित लिबरल, प्रगतिशील या रेशनलिस्ट टाईप के well educated नागरिक होते हैं. दरअसल इनका न राजनीति से, न मोदीजी से और न बीजेपी या आरएसएस से कुछ अर्थपूर्ण संबंध या ज्ञान होता है. इनकी यह सजगता बस इतने भर तक महदूद है कि कोई इन्हें कहीं हिंदुत्व से न जोड़ बैठे. इनका सब पढ़ा-लिखा जैसे बेकार हो जाएगा !

फिर, इन्हें किसी से ‘हिन्दू’ होने का सर्टिफ़िकेट भी नहीं चाहिये. इनके लिए तो भोजन की थाली के किनारे बैठे रहना काफी है. इतने लोग खा तो रहे हैं. उसी से इनका भी पेट भर जाना चाहिए. इस देश में जो हिन्दू हैं, उनके बीच जन्म लेना भर क्यों न काफ़ी हो ! तिस पर यह तय होना अभी बाक़ी है कि ये लोग सही मायने में लिबरल या प्रोग्रेसिव होने का पैमाना हैं भी या नहीं.

यहाँ मुद्दा यह है कि अपने हिन्दू होने को लेकर self-conscious ये लोग सोशल मीडिया की हर पोस्ट शायद बंद आँख से पढ़ते हैं. 

हिन्दुत्व कहता है पिंड में ब्रह्मांड है. यह तभी सही होना चाहिए जब पिंड अपने ‘अंड’ से बाहर आ गया हो. ‘बन्द आँख’ अंडावस्था की सूचक है जब व्यक्ति को अपने छिलके के आगे कुछ दिखाई नहीं देता. यही कारण है कि आधुनिकता के भरम में भूले इन पढे-लिखे लोगों की पूरी-की-पूरी सुशिक्षा इनके ‘अंडत्व’ को उबाल-उबालकर ठस्स बनाती चली जाती है.

मुझे यह जानने की जिज्ञासा है कि लोकतंत्र में राजनीति क्या लोकमात्र के लिए अनिवार्य नहीं है? अब तक तो माना, भारतीय जाति स्वयं का नाश होते जाने को देखने के लिए विवश थी. मगर संवैधानिक लोकतंत्र में सम्यक् राजनीति से ही भारतीय अस्मिता की रक्षा हो पायेगी. दूसरी ओर भारतीय जीवन-पद्धति से ही राजनीति सम्यक् बनेगी. तुलसीदास कह गए हैं —  ‘बिनु सत्संग बिबेकु न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई॥‘ इसी तरह सम्यक् राजनीति भी विवेकपूर्ण आचरण से ही संभव है; और वैसा आचरण सही राजकाज के बिना आयेगा कैसे? विकास तभी सधेगा जब आप विश्वामित्र हों या वसिष्ठ, दशरथ व उनके पुत्रों को अनदेखा नहीं करेंगे. ‘कोई नृप होऊ’ षड्यंत्रकर्त्री मंथरा का कथन है, वसिष्ठ का नहीं.

राजनीति क्यों नहीं करें? इन पढे-लिखों के चलते हिदुस्तानी बस सोये रहें? संविधान के अधीन स्वतंत्र सत्ता रखने वाले राष्ट्र में मतदान की ज़िम्मेदारी से शुरू हो जाने वाली राजनीतिक जाग्रति प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक उत्तदायित्व है या नहीं?

उत्तरदायित्व – sense of responsibility — वह गर्माहट है जो अंड को सेती है. तब पिंड छिलका तोड़कर बाहर निकलता और आँख खोलता है.

हमारे पुराणों में वर्णन है कि नारायण के दो पुलिसवाले थे, जय और विजय. सनकादि मुनि (जिनका नारायण भी सम्मान करते थे) जब नारायण से मिलने गये, तो जय-विजय ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया. 

सनकादि मुनियों के श्राप से उन दोनों ने in line of duty अपने प्राण गँवाये.

 नारायण ने उन्हें duty करते हुए मारे जाने पर, पुरस्कार के रूप में हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के नाम से जन्म दिलवाया, उनका उद्धार किया और वे पुन: वैकुंठ-निवास की अपनी हैसियत में लौट सके.   

हमारी आधुनिक पुलिस के IPS अधिकारी शेर की तरह हैं. Association भेड़ियों की होती है, शेरों की नहीं. इसीलिए प्रचलित idiom है — “A Pack of Wolves”.

साधु-साध्वियों के श्राप की शक्ति पर संदेह करना भले ‘आधुनिकता’ कहलाता हो, लेकिन याद रहे, सेब के पेड़ से फल आधुनिक युग में भी नीचे ही गिरते हैं और न्यूटन के Law of Motion की पुष्टि करते हैं. 

हेमन्त करकरे ने line of duty में जो प्राण गँवाये, उसका सम्मान करने से साध्वी प्रज्ञा ने कब मना किया? 

लेकिन हिंदू आतंकवाद स्थापित करने में जिस किसी से भी ‘जय-विजय-पन’ होगा उसे duty करने और आतंकवाद से लड़ने में जान देने पर सम्मान तो मिलेगा, लेकिन की गई राजनैतिक भूल पर, साध्वी के श्राप से भी गुज़रना पड़ेगा.

 इसमें एक ओर चुनाव आयोग का दख़ल अज्ञान का सूचक लगता है.  दूसरी ओर साध्वी प्रज्ञा के हेमंत करकरे के व्यवहार से अपने ऊपर गुज़री बताने को लेकर IPS association की आपत्ति, शेर की हैसियत से गिरकर, उनका ‘भेड़ियापन’ जैसा हो जाता है.

जिन्हें चिंता यह है कि साध्वी प्रज्ञा अपने  ऊपर torture का वर्णन अब क्यों कर रही हैं, पहले क्यों नहीं किया, उन्हें बहुत पहले ही India TV पर ‘आपकी अदालत’ का साध्वी-एपिसोड देख रखना चाहिये था. 

मेरे विचार से साध्वी प्रज्ञा को पूरा-पूरा समर्थन दिया जाना इसलिए उचित है कि ऐसा करना हेमन्त करकरे का अपमान हरगिज़ नहीं है, बल्कि भगवा या हिंदू आतंकवाद जैसी घोर-शब्दावली को मिले श्राप का नारायणीय निराकरण है.

मित्रवर श्री लोकेन्द्र शर्मा का मीडिया में अनेक दशक का अनुभव है. व्हाट्सऐप पर साध्वी-विषयक मेरे उपर्युक्त मंतव्य पर उन्होंने जो कहा, मैं नीचे ज्यों-का-त्यों शामिल कर रहा हूँ. इससे कितनी ही बातें साफ़ हो रही हैं और ज़्यादा कुछ कहने को रह नहीं जाता.  

“हेमंत करकरे के विषय पर बहुत सारी बातें कही जा रही हैं. चलिये मैं कुछ तथ्य भी रख देता हूं.

“भारतीय सेना के निर्दोष कर्नल पुरोहित को, जो आर्मी इंटेलिजेंस के कार्य में लगे थे और आतंकवादियों के समूह में इनफ़िल्ट्रेट करके जासूसी से जानकारियां एकत्र कर रहे थे. उन कर्नल पुरोहित को फँसाने वाले और फ़र्ज़ी RDX प्लांट करने वाले हेमंत करकरे ही थे. हेमंत करकरे ने ही कर्नल पुरोहित पर झूठा आरोप लगाया था कि उन्होंने सेना का RDX चुराया और इसका बम धमाके में इस्तेमाल किया.

“हेमंत करकरे एक ऐसे आईपीएस अधिकारी थे, जिन्हें पता ही नहीं था कि इंडियन आर्मी आरडीएक्स का इस्तेमाल ही नहीं करती. इसीलिए उनका झूठ पकड़ा गया और कर्नल पुरोहित निर्दोष साबित हुए.

“यह भी खुलासा हुआ कि हेमंत करकरे, सीधे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के निर्देश पर जांच को आगे बढ़ा रहे थे, जो उनके पक्षपाती होने और कांग्रेसी इशारों पर कार्य करने वाले प्यादे के रूप में स्थापित करता है.

“हेमंत करकरे ने साध्वी ठाकुर और कर्नल पुरोहित को प्रतिदिन प्रताड़ित किया, थर्ड डिग्री दी, कर्नल पुरोहित के मात्र एक पैर में ही, 43 जगह हड्डियाँ टूटी हुई थीं, और साध्वी ठाकुर की तो मार-मार कर रीढ़ की हड्डी ही तोड़ दी गई थी.

“यह सब कुछ केवल इन निर्दोषों से झूठे इक़बालिया बयान दिलवाने के लिए किया गया. कांग्रेस का उद्देश्य था मुस्लिम वोट बैंक को प्रसन्न करने के लिए हिंदुओं के ऊपर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया जाए.

“हेमंत करकरे कांग्रेस के इसी उद्देश्य की पूर्ति में लगे हुए थे.

 “विडंबना देखिए कि जिस मुस्लिम समाज को प्रसन्न करने के लिए यह सब कुछ किया जा रहा था, पाकिस्तान से आये उसी मुस्लिम समाज के एक आतंकी ने हेमंत करकरे को गोली मार दी.

“अब यदि 26/11 आतंकी हमले में हेमंत करकरे के मारे जाने की बात करें, तो हेमंत करकरे कॉम्बैट के समय नहीं मरे थे. जीप में बैठकर परिस्थिति का जायज़ा लेने गए हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक काम्पटे पर आतंकवादियों ने AK 47 से फायरिंग कर दी थी. केवल अशोक काम्पटे ही जीप से कूदकर उतर पाये थे और काउंटर फायरिंग की थी. बाकी सब उसी फ़ायरिंग में मारे गए थे. हेमंत करकरे को गले और कंधे पर गोलियां लगी थी जिससे वह मारे गए.

“26/11 कॉम्बैट में असली वीरता का परिचय देने वाले थे, मुंबई पुलिस कांस्टेबल तुकाराम ओंबले, जिन्होंने हाथ में मात्र एक लाठी लेकर एके-47 से गोलियां चलाने वाले अजमल आमिर कसाब को पकड़ा. अपनी छाती पर उन्होंने AK 47 का एक पूरा बर्स्ट फ़ायर झेला, इसके बावजूद अजमल कसाब को नहीं छोड़ा.

“विश्वास मानिए यदि तुकाराम ओम्बले ने कसाब को ज़िंदा नहीं पकड़ा होता, तो कांग्रेस ने 26/11 आतंकी हमले का आरोप हिंदुओं पर मढ़ दिया होता, क्योंकि सभी जेहादी आतंकवादी अपने हाथों में कलावा और गले में हिंदू भगवानों के लॉकेट बांध कर आये थे. तुकाराम ओंबले अपने प्राणों का बलिदान देकर देश के सभी हिंदुओं को आतंकवाद के कलंक से बचा गए.

“कॉम्बैट में वीरगति प्राप्त करने वाले दूसरे व्यक्ति थे, एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, जिन्होंने अपने साथियों की जान बचाने हेतु, उन्हें ऊपर आने से मना कर कहा था “ऊपर मत आओ मैं संभाल लूंगा.”

“और आज जिन कांग्रेसियों और लिबरलों को शहीदों की चिंता हो रही है, तो उन्हें बता दूं कि दिल्ली के बटला हाउस कांड में मोहन चंद्र शर्मा दिल्ली पुलिस इंस्पेक्टर भी वीरगति को प्राप्त हुए थे, आतंकवादियों से लड़ते हुए; परंतु इन सभी लिबरलों, कांग्रेसियों और कई विपक्षी पार्टियों ने बटला हाउस एनकाउंटर को फ़ेक ही नहीं कहा, मोहन चंद शर्मा के बलिदान का मजाक भी  उड़ाया था. राहुल गांधी की माँ सोनिया गांधी तो फूट-फूट कर उन आतंकवादियों के मरने पर रोई भी थी, इसकी पुष्टि स्वयं कांग्रेस नेता, भूतपूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद ने की थी.

“अतः कांग्रेसियों से निवेदन है कि कृपया, आम जनमानस में झूठ फैलाने का कष्ट न करें कि कौन शहीद था और कौन नहीं. तथ्य और सत्य सबके सामने हैं . प्रमाण सहित उपलब्ध हैं. आम जनता को अब सत्य व झूठ में अंतर करने की समझ है,

“और अब यदि IPS एसोसिएशन की बात करें, तो उन्हें भी अधिक उछलने के बदले 14 साल की रुचिका गिरहोत्रा के यौन उत्पीड़न करने वाले IPS एस.पी.एस. राठौर के विषय में याद कर लेना चाहिए. वह भी एक आईपीएस था. और यदि हर IPS अधिकारी बुरा नहीं होता, तो हर IPS अधिकारी दूध का धुला भी नहीं होता”.

22-04-2019

2 thoughts on ““Rajneeti Mat Karo”

  1. सच कड़वा होता है पर सत्य ही अन्ततः जीतता है इसमें दो राय नहीं।झूठ कब तक सत्य का मुलम्मा चढ़ाए रह सकता है??? जिसपर बीतती है वही जान सकता है, सताये जाने पर हम सभी लोग उसे कोसते हैं जिसने हमें सताया होता है। यह मानव स्वभाव है।इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि अगर क़साब पकड़ा नहीं गया होता तो मुम्बई पर हुए हमले को भगवा आतंक सिद्ध कर कुछ लोग अपना मक़सद पूरा करने में सफल हो ही जाते। हेमंत करकरे की शहादत को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। उनकी शहादत और तुकाराम की बहादुरी से ही हिंदुओं पर आतंकी होने का कलंक लगने से बच गया। जो हर बात पर राजनीति करते हैं( अपनी सुविधानुसार) उनके मुंह से राजनीति न करने की सलाह हास्यास्पद ही लगती है। हिन्दुत्व राजनीति का हिस्सा बनना ही चाहिए, बहुत देर कर दी अब और नहीं……

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