Neo-Nazism


न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखक-संपादक जोसेफ़ होप  का एक लेख ख़ूब चला था “Who Is Modi?”

जिन लोगों की अंग्रेज़ी मुझ से भी ख़राब है उन्होंने अपनी गतिविधियाँ और तेज़ कर दी थीं क्योंकि इस लेख पर अमल (यानी भारत के हित (स्वार्थ?) के विपरीत आचरण) तो ये लोग पहले से कर ही रहे थे. जिनकी अङ्ग्रेज़ी मुझ से अच्छी है उन्होंने भी समझ लिया कि यह left handed compliment है, इसलिए compliment part को तो छोड़ो, बस इतना याद रखो और करो कि हमारे ही किसी हिन्दुस्तानी माणूस की तारीफ़ हो जाये, यह होना नहीं चाहिए! वरना हमें पढ़ा-लिखा कौन कहेगा? बाक़ी, मोदी को रोका जाये, जोसेफ़ होप का इतना कहा ठीक है. 

अब यह लेख हिन्दी में आया है तो होगा यह कि जिन्हें पहले समझ में नहीं आया था वे मोदी-विरोध के नाम से भारत के हितों पर प्रहार बढ़ा देंगे. जिनकी समझ में आया था (समझ में यह facility मौजूद रहती है – in-built है – कि जैसा हमें suit करेगा वैसा समझेंगे!) वे दुनिया को बचाने के लिए मोदी-विरोध बढ़ा देंगे – हिंदुस्तान का क्या है, यह तो हमेशा से ऐसा ही रहा है और ऐसा ही रहेगा. थोड़ा-बहुत इसे अंग्रेज़ संभाल गए, कुछ नेहरू और कांग्रेस ने संभाल दिया, और फिर मार्क्सवाद ने इसे rationalist activism दे दिया, तब जाकर कहीं यह देश बचा!

जोसेफ़ होप की दिक्कत यह है कि दुनिया के किसी भी पत्रकार की तरह इन्हें भी भ्रम है दुनिया के हर देश का नेता बेवकूफ़ है जो मोदी को आँखों में धूल झोंक लेने दे रहा है और अखिल ब्रह्मांड की समझदारी कहीं है तो सिर्फ़ जोसेफ़ होप के पास है!

इन महाशय की समझदारी का आलम तो यह है कि इनके मुताबिक़ अमेरिका जानता था हिटलर उसका दुश्मन है. फिर भी होप साहब का समझदार देश (जो अब मोदी के सामने बेवकूफ़ हो गया है!) पूरे विश्वयुद्ध के दौरान अपनी मित्र allied forces को axis forces के सामने मरने को छोड़े रहा. और जब लड़ाई में कूदा तो जितना हिटलर ने चार साल में नहीं किया उतना एक बार में हिरोशिमा और नागासाकी में कर दिया! इतने ग़ैरज़िम्मेदार अमेरिका से भी मोदी ज़्यादा ख़तरनाक है! भई वाह!

मोदी क्यों ख़तरनाक है – क्योंकि वह अपने देश भारत का हित (होप के शब्दों में ‘स्वार्थ’) देखता है! क्या ग़ज़ब का logic है!!

विश्व-शक्ति बनकर भारत पूरी दुनिया को आँख दिखाएगा – ऐसी बात केवल होप जैसा भयंकर विद्वान् ही कह सकता है! इस एक बात ने ही बता दिया कि होप उन लोगों में से है जो Abrahamic religions ( अर्थात् Christianity-Islam) के पीपे (tin-container) से कभी बाहर नहीं निकले जो जान पाते कि हिन्दुत्व पर चलने वाले हिंदुस्तान से तो विश्व-विजय के लिए निकला सिकंदर भी एक सबक लेकर वापसी यात्रा में अर्थी पर लेटा था – हाथ coffin से बाहर रहने चाहिएं ताकि दुनिया देखे, विश्व-विजय तो एक तरफ़, आदमी खाली हाथ जाता है. आँख दिखाना तो दूर!  

यह आपके पीपे की ही कृपा थी कि मार्क्स ने कह दिया religion is opium. मार्क्स को हिन्दुत्व का कुछ भी पता नहीं था. अब्राहमिक धर्म ही उसके लिए धर्म थे! यह भी आपका ही पीपा था कि नीत्शे  ने घोषित कर दिया – गॉड इज़ डेड! और जैसे ही मनुस्मृति उसके हाथ लगी, वह बोला, हमें धर्मों की कोई ज़रूरत नहीं है. मनुस्मृति वह वैज्ञानिक ग्रंथ है जो सिर्फ़ उसके बारे में बताता है जो आदमी नहीं करता,क़ुदरत करती है! यह ग्रन्थ ही काफ़ी है.

और जनाब होप साहब, आप जैसे विद्वान् को यह तो मालूम था कि हिटलर अमेरिका का दुश्मन है, मगर यह कैसे पता नहीं चला कि हिटलर कट्टर मार्क्सवादी था? मार्क्सवाद का जो peak हो सकता है, वह हिटलर था. उसका स्वस्तिक रूसी लाल सेना के पहले झंडे से आया, गैस चैंबर स्टालिन-लेनिन से मिले,राष्ट्रवाद इंग्लैंड का nationalism नहीं,पूंजीवाद के विरुद्ध हथियार था –  संसाधनों का ही नहीं, नागरिकों का भी राष्ट्रीयकरण कर दो! हिटलर का कहना था यह कैसे हो सकता है कि आप समाजवाद की बात करें और सेमेटिक जातियों (अरब-यहूदी) के mammonism — धनपरायणता —  के खिलाफ़ न हों? यहूदी उसके लिए शेक्सपियर के ‘मर्चेन्ट ऑफ वेनिस’ के पात्र शायलॉक का रूप थे! पूंजीवाद का चरम! उसकी चिंता थी कम्युनिस्टगण ठीक से मार्क्सवाद को न पढ़ते, न लागू करते!

हिटलर पूरी तरह से मार्क्सवाद की घड़न था. ठीक वैसे जैसे ओसामा बिन लादेन अमेरिका की रचना. जैसे भिंडरांवाले इन्दिरा की देन!

आप पूछेंगे फिर हिटलर ने रूस पर क्यों हमला किया?

जवाब है जिस कारण ओसामा ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर किया!

भारत के विपक्ष को एकजुट होकर मोदी के खिलाफ देश को भड़काने के पक्ष में होते समय जोसेफ़ होप को यह सब दिखाई नहीं देगा. ऐसे बुद्धिजीवी/पत्रकार वे लोग हैं, मार्क्सवाद को जवाब देते वक़्त जिनकी घिग्घी बंध जाती है और rationalist हो जाने के सिवा जिन्हें और कोई उपाय नहीं दिखाई देता. ये वह लोग हैं जिनके लिए किसी ने ठीक कहा था कि अपने दुश्मन से लड़ने में एक दिन हम उसी का चेहरा बन जाते हैं! मार्क्सवाद से लड़ते-लड़ते ख़ुद रेशनलिस्ट हो लिये!

अब इन्हें कैसे दिखाई देगा कि जैसे मार्क्सवाद ने हिटलर दिया, उसी को मंहगा पड़ा, अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन बनाया, उसी को भुगतना पड़ा, इन्दिरा गांधी ने भिंडरांवाले घड़ा और जान गंवायी, उसी तरह इस सोच के पीपाबंद पश्चिमवालों ने एक दिन पाकिस्तान बनाया और आज उन्हीं को आतंकवादी लादेन छिपाकर उसने मुँह चिढ़ा दिया!

हिटलर, लादेन, भिंडरांवाले जैसे individuals पैदा करना, फिर उसी तर्ज़ पर एक पूरा देश बनाने का खौफ़नाक experiment कर डालना!!

पाकिस्तान-एक्सपेरिमेंट सफल होने पर वहाबी इस्लामी ताकतों का हौसला बुलंद हो गया जो आज ISIS के खलीफ़ा तक जा पहुंचा है. इधर पाकिस्तान का होना इसलिए ज़रूरी माना गया कि इसे बाक़ी बचे हिंदुस्तान के इस्लामीकरण की कोशिशों का कैंप बनाया जाये!

जो बात जोसेफ होप को और उसके पाले हुए हिन्दुस्तानी पत्रकारों को दिखाई नहीं देगी वह है कि इस वक़्त मार्क्सवादी ताक़तें इस्लामी आतंकवाद में से Neo-Nazism घड़ रही हैं जो हिटलर से भी ज़्यादा मंहगा साबित होने जा रहा है. इस प्रयोग के लिए हिंदुस्तान की ज़मीन काम में ली जा रही है. केरल, कर्णाटक, JNU, पुणे-कोरेगाओं, भारत के टुकड़े-टुकड़े गैंग, PFI, NGO, सोशल एक्टिविस्ट, पत्रकार,विपक्षी राजनीतिक दल – सबको एकजुट किया जा रहा है, मोदी को बहाना बनाकर! अगर यह किसी को नहीं पता कि मोदी के मन में क्या है तो इसमें ऐतराज़ की बात क्या है? इतना तो पता है न कि उनके मन में अपने देश का हित है. यह कहाँ ज़रूरी है कि भारत का देश-हित जोसेफ़ होप से एप्रूव करवाने के बाद ही लागू किया जा सकेगा?

यह स्पष्ट होना चाहिए कि मोदी की कोई लड़ाई इस्लाम के खिलाफ़ नहीं है. इन तमाम वर्षों में एक भी ऐसा निर्णय नहीं है जो इस्लाम धर्म या मुसलमानों के खिलाफ़ हो!

मोदी का जो होना हो सो हो. भारत की ज़मीन जाने! मगर जोसेफ होप जैसे लोग और उसके पिछलग्गू Neo-Nazism की कामयाबी के लिए काम कर रहे हैं. इन्हें पराजित करने के लिए मोदी का बने रहना और हर चुनाव जीतना ज़रूरी है!

रहा नियो-नाज़ीवाद, सो वह अकेले हिंदुस्तान का सिरदर्द नहीं है!!

23-09-2018

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